सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

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मुझे दोष देने से पहले
दर्पन तो देखो
तन गुलाब का मन पलाश का
मुझे बुलाता है।

दीवाली में टेसू राजा
घर घर जाते हैं
बुझे हुये मावसी घरों में
दीप जलाते हैं

मुझे दोष देने से पहले
मौसम तो देखो
पुरवा का तन पावस का मन
क्या समझाता है।

रंगों में फूलों की मस्ती
घुल कर छाती है
आँचल से बिछुरी अँगिया
दरबार सजाती है

मुझे दोष देने से पहले
पाहुन तो देखो
मन का भृंगी गीत तरंगी
किसे सताता है

मुझे लग रहा जग सारा
यह बन पलाश का है
बिना छुये जो डस जाये
वह तन वताश का है

मुझे दोष देने से पहले
अपने को देखो
वीणा सा तन सरगम सा मन
गीत सुनाता है

- डा० जीवन शुक्ल

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