हुए क्यों पलाश
रंग रंगत विहीन
उपवन का हृदय ज्यों
दग्ध हत मलीन
चंदा क्यों कुम्हलाया
सूरज क्यों मौन है
रजनी का तमस द्वार
खोलता वो कौन है
कहो किन सवालों में
हुये हो निलीन
बोलो पलाश
क्या बात तुम्हें पता है
आज सत्य कहना भी
जुर्म और खता है
छल कपट मक्कारी
मूल्य हैं नवीन
ऋतुचक्र बदला है
बदल गई सोच
जिसके जो समाने है
रहा वही नोच
इसने ही
लालिमा ली मुझसे छीन
कौवे उलूक बाज
हुये श्वेतपोश
शुक पिक मयूर हंस
हो गए खामोश
घोंघा सिंहासन पर
हुआ है आसीन
विषधर खूँखार बड़े
विचर रहे वक्ष खोल
निर्धन निरीह नम्र
बजा रहे बस कपोल
अश्वसेन तक्षक ही
आज के कुलीन
नागफनी भटकटैया
उग आए सभी ओर
दिन वसंत के गए
ग्रीष्म मार रहा जोर
फूल सभी कंटकों के
हो गए आधीन
-रामकृष्ण द्विवेदी मधुकर
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