सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

दस्तखत पलाश के 16

वासंती समझौते
दस्तख़त पलाश के।

गंधों के दावों का
एक बाग फूला,
आँखों ने कलियों पर
डाल दिया झूला,
कहाँ रहे कोयल के
आज मन हुलास के।

आसमान छूने को
परचम लहराए,
कौवों ने सुबह-सुबह
काँव गीत गाए,
उगल रही तोती भी
शब्द कुछ भड़ास के।

तेज़ हुई आँधी में
डोलते बबूल,
डाल की गिलहरी भी
राह गई भूल,
टिड्डी दल पाले है
ख़्वाब कुछ विकास के।

-ब्रजनाथ श्रीवास्तव

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