सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

फागुन में टेसू बन जाऊँ 16

फागुन में टेसू बन जाऊँ,
सावन मेघ मल्हार
भरी दुपहरिया जेठ में शीतल छाया क्यार

ऋतु बसंत में
हवा बसंती, पूरबा की पुरवाई
बनकर खेलूं आंख-मिचौली घर, आंगन, अमराई
भादो की काली रातों में
दीप जलाऊँ द्वार

पूस-माघ की
बाहों में 'चांद' जले जब रातों को
दिल ढूँढे फिर, फूल 'पलाश' के रंग-रंगे जज्बातों को
बन बदरा, घनघोर घटा, तन पर
बरसाऊँ 'प्यार'

--नियति वर्मा

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