सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

जिस दिन पलाश जंगल में दहके 16

जिस दिन पलाश
जंगल में दहके
तुम आ जाना!

नववर्ष हर्ष उत्कर्ष
बहारों ने नापे!
हलदी वाले हाथों ने
दरवाजे छापे!

जिस दिन मौसम की गायक
कुहु कुहु कुहुके
तुम आ जाना!

सिल पर पिसते रंगत लाते
गहरे होते!
इंद्रधनुष जैसे
सपनो में ठहरे होते

जिस दिन मुंडेर पर
कोरी चूनर बहके
तुम आ जाना!

झरझर झरते रंग
झोंके रस गंधो के
जिस दिन ऊँची मेडों पर
किंशुक लहके
तुम आ जाना!

-निर्मला जोशी

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