झुंड में है पंछी अकेला नगर में
हसरतें लिए आया है शहर में
झुंड में है पंछी अकेला इस नगर में।
बाँस सी लम्बी घनी
है उम्मीद की कोठी
यादें सुपेली सी छूटीं
पल-पल नये करील सी
हैं आशाएँ फूटीं
हर पोर आजमाना अपनी नजर में। झुंड में॰॰॰
भीड़ से घिरा है जन
लगे उसे फिर भी विजन
हर भावना का भाव यहाँ
जूतों की तल्लियों से
घिस गये रिस्ते यहाँ
पथरीली काया बनते जन शहर में।झुंड में॰॰॰
स्मृति घनी नभ छाया;
क्षितिज तक पंख फैलाया
दर्द बदली में छिपाया
न कहीं पर नींड़ पाया
लौट फिर विहग आया
हाथ अपने ही हैं छोड़ते डगर में। झुंड में॰॰॰
-उत्तम द्विवेदी
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