सुबह शाम
मै अकेला
करता रहा अपने से बात
भी़ड-भा़ड भरे शहर में
रहता हूँ-एकांत ।
ढ़ढू-रहा प्रेम
चारों-ओर नफरत के बाजार
डरा-डरा हर कोई यहाँ पर
किसी-का नही-आधार ।
बिना-स्वार्थ कोई किसी-से
नही-बतियाता
आस-पडोस का मर जाने पर
हलवा-पु़डी खाता ।
नही-दिखता उगता दिनकर
चाँद-भी छुपा रहता-
इस-शहर में हर कोई
अजब-गजब सा रहता ।
ऊँचे-ऊँचे घरोंदे
मन है-छोटा छोटा
खोटा-सिक्का ही यहाँ
बहुत-दूर तक चमकता ।
-पुरुषोत्तम व्यास
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