भरी भीड़ में एकाकी हम
बने हुए अपवाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
बूढ़े अनुभव जंग लगे-से
काम नहीं आये
थके-थके से देखे हमने
जीवन के साये
संवादों में उगे अचानक
संशय औ॔ अवसाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
जंगल भर में गहमागहमी
भाषा की हलचल
बंदर की मानिंद कर रहे
सब की सभी नकल
एक टिटहरी पढ़ती जाती
अधकचरा अनुवाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
डा० अश्वघोष
(देहरादून)
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