सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

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महानगर के जंगल में हम
घूम रहे होते
शायद हमने कर डाले
अनचाहे समझौते

संधिपत्र तो लिखे
प्यार की कीमत नहीं चुकी
अपने ही अधरों में बंदी
अपनी हँसी-खुशी
फूटे रिश्तों में
बैलों से जोते
महानगर के जंगल में हम
घूम रहे होते

अम्मा की रामायण-गीता
सहसा रूठ गई
हरिद्वार के गंगाजल की
शीशी फूट गई
पानी पर तिनके की नाईं
घूमे समझौते
शायद हमने कर डाले
अनचाहे समझौते

डा० अश्वघोष
(देहरादून)

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