मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

उत्सव का मौसम 18

घर घर में
फिर आया
उत्सव का मौसम

बिजली की धोबिन ने
जमकर था लूटा
धोबी इसके फंदों
से थोड़ा छूटा
त्यौहारी पैसों से
जेबों में खनखन
सूखे आँगन में है
कपड़ों का सावन
सहरा पे लहराया
रंगों का परचम

हलवाई ने प्रतिमा
शक्कर से गढ़ दी
भूखी गैलरियों में
जमकर ये बिकती
बढ़ई के औजारों में
होती खट-खट
दिन भर भड़भूँजे के
घर मचती पट-पट
आँवें के मुख पर है
लाली का आलम

मैली ना हो जाएँ
बैठीं थीं छुपकर
बक्सों से खुशियाँ सब
फिर आईं बाहर
हर घर में रौनक है
गलियों में हलचल
फूलों से लगते वो
पत्थर जो थे कल
अद्भुत है कमियों का
खुशियों से संगम

-धर्मेन्द्र कुमार सिंह
(बरमाना, बिलासपुर,हिमाचल प्रदेश)

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