आँगन आँगन मौसम साथी
बाँच रहा है कोई पाती
बाग बाग अब
गंध उलीचे
सूरज बैठा लेकर सूप
सुधियाँ झाँकें मन गलियारे
मिटने आतुर बंधन सारे
ओस पाँख पर
मोती सींचे
मनभावन सा धरती रूप
पंछी चहके सोना किरने
भरें कुलाँचे हिरनी हिरने
साधक बरगद
आँखें मीचे
ऋतु है रानी मौसम भूप
-अशोक गीते
(खण्डवा)
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