मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

नए अन्न की खुशबू 18

पूछो नहीं
कि क्या उत्सव का मौसम ले आया
गंगा जमुना की यादों का
संगम ले आया

मिला दशहरा
दीवाली की उजली साँसों से
धरती खुल कर बतियाती
अपने आकाशों से
कौंधा कोई छ्न्द,
ताल, स्वर, सरगम ले आया

नए अन्न की
खुशबू आई, जागी नई रसोई
नई बहू ने चाँद सरीखी
निर्मल रोटी पोई
नया नया सपना
सहेज कर बालम ले आया

किरन छुई
सूरज की गहरी नींद नदी की टूटी
लहर लहर में लगी चमकने
शुभ दिन सजी अँगूठी
भूला सा प्रसंग आखों में
शबनम ले आया

झालर पहने
हुई मुँडेरे माँग लगी फिर भरने
डेहरी डेहरी उजियारे की
चिड़िया लगी उतरने
एक हाशिया सघन सुखों का
कालम ले आया

काजल भरी
रात की आखों हँसने लगा सवेरा
फिर जहाज का पंछी लौटा
चहका रैन बसेरा
अपना "सांताक्रूज", "अमौसी",
"पालम" ले आया

- यश मालवीय
(इलाहाबाद)

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