फूल फूल झरतीं फुलझड़ियाँ
मन हो रहा मगन
अगरु धूम्र
अरु मधुरिम गीत
हर मुख पर सुख का नवनीत
सजे सजाए
घर आँगन में
दीपों की हैं झिलमिल लड़ियाँ
खिल खिल है आँगन
उत्सव छाया
है चहुँ ओर
आज धरा पर उतरी भोर
मेल जोल में
बाँध रही हैं
दीपावलि की मंगल कड़ियाँ
आनंदित जनमन
-मुक्ता पाठक
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