गुरुवार, 26 सितंबर 2013

सब कुछ बदला 01

सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

भोजपत्र के युग से
कम्प्यूटर के युग तक
दुनिया ने आँसू दे-देकर
छीने हैं हक़
हरिक हँसी पर
ताले जड़ डाले नफ़रत ने
है चला आ रहा
सतत् यही क्रम आज तलक
लेकिन प्रेम-दिवानी
मीरा ने हर युग में,
हँस कर विष पीने का
अपना ढंग न बदला
सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

साँसों पर पहरे
लेकिन ज़िन्दा है अब भी
वर्जित फल चख़ने की
अभिलाषा है अब भी
जंगल हो,बस्ती हो,
पर्वत हो या सहरा,
ढाई आखर है तो
ये दुनिया है अब भी
सतयुग से कलियुग तक
जग बेशक आ पहुँचा,
फूलों ने खुशबू का
लेकिन संग न बदला
सब कुछ बदला
मगर प्यार का रंग न बदला

-संजीव गौतम

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