शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

आतंकी हैं हम सभी 08

आतंकी है हम सभी, फैलाते आतंक।
तनिक न सहते असहमति, ज्यों विषधर का डंक।।

फैलाते धुआँ,
ज़हर-भरी हवा,
मौत का कुआँ।

दोषी है कौन?
प्रकृति करे प्रश्न,
छा जाता मौन।

कर पंकज की चाह नित, बिखराते हैं पंक।
आतंकी है हम सभी, फैलाते आतंक।।

जंगल काटे,
पर्वत खोद दिए,
तालाब पाटे।

हैं सर्वभक्षी,
डरते पशु-पक्षी,
असुर-कक्षी।

विश्वासों के तज कुसुम, काँटों संग निशंक।
आतंकी है हम सभी, फैलाते आतंक।।

रूढ़ियाँ-प्रथा,
वर्ण दल या उम्र,
पक्ष-विपक्ष।

दिलों का मेल,
तोड़ देना है खेल,
पीढ़ी का फ़र्क।

यही सभ्यता-संस्कृति, पाखंडों की लंक।
आतंकी है हम सभी, फैलाते आतंक।।
--
संजीव वर्मा 'सलिल'

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