सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

मैं सड़क हूँ 13

मैं सड़क हूँ
अहम कब मुझमें भरा है,
मुझमें है केवल क्षमता|

ऊँच नीच के भेद ना जानूं
जात पात में अंतर क्या,
एक माटी के दीप हैं सारे
दीप - दीप में अंतर क्या,

बाँह पसारे खड़ी हूँ ऐसे
जैसे हो माँ की ममता|


रौंद रौंदकर चलते मुझको
डाल रहे कूड़ा-करकट,
लहूलुहान नित मुझको करते,
बन जाती जैसे मरघट,

साफ रखो घर के जैसा क्यूँ
बन जाते मेरे हंता |


जीवन भी एक सड़क है जिस पर
एक पथिक से चलते हम ,
गिरते पड़ते रहें सँभलते
मन ही मन गलते हैं हम,

प्रेम बढायें मन में हम भी
नयनों में लायें समता ||


--गीता पंडित

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