अरे अभी
समाचार-पत्र तक नही आया
तनिक और सोने दो।
धुआँ-धार साँस लिए
कानो मे शोर भरे
लुटा -पिटा चुका –बुझा
देर रात लौटा था
पौ फटने तक ठहरो
कुछ उजास होने दो।
बबुआ की खाँसी मे
रात भर नही सोया
मुनिया के रिश्ते की
बात भी चलानी है
अभी बहुत समय पडा
करवट ले लेने दो।
रोज सुबह पलकों से
इन्द्रधनुष झर जाते
रोटी का डिब्बा ले
बस पर चढ जाता हूँ
पल भर तो इन आँखों में
गुलाब बोने दो।
-भारतेन्दु मिश्र
(नई दिल्ली)
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