द्वार पर धरा
दीपक
भोर तलक जलने दो
सूरज ने कैद किया
विद्रोही चाँद
लुकछिप कर भागा है
शुक्र बाड़ फाँद
तारों ने टाँक दिये
चमकीले बूटे
क्षितिज के पार नहीं
ज्योति पिंड छूटे
जुगनू का संगी बन
अंधियारा हरने दो
दीपक को जलने दो
यौवन में रंग भरे
मंगल की चाल
मदमाता केतु अब
देता है ताल
राहू की नजर लगी
चाँद हुआ दुबला
कैसे बच पायेगा
लक्ष्य बना अगला
धरती के ओर छोर
रोशनी बिखरने दो
दीपक को जलने दो
-सुरेश पण्डा
(रायपुर)
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