मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

दीपक को जलने दो 18

द्वार पर धरा
दीपक
भोर तलक जलने दो

सूरज ने कैद किया
विद्रोही चाँद
लुकछिप कर भागा है
शुक्र बाड़ फाँद
तारों ने टाँक दिये
चमकीले बूटे
क्षितिज के पार नहीं
ज्योति पिंड छूटे

जुगनू का संगी बन
अंधियारा हरने दो
दीपक को जलने दो

यौवन में रंग भरे
मंगल की चाल
मदमाता केतु अब
देता है ताल
राहू की नजर लगी
चाँद हुआ दुबला
कैसे बच पायेगा
लक्ष्य बना अगला

धरती के ओर छोर
रोशनी बिखरने दो
दीपक को जलने दो

-सुरेश पण्डा
(रायपुर)

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