मौसम ने
एक बार किया फिर खुलासा
कौन करे दूर मेरे मन का कुहासा
झेला जो मैंने वो झेले न कोई
जाड़ों की रातें हैं छम छम के रोईं
नहीं अफ़साना है कोई ये
सुना सा
बर्फ़ीली सर्दी ये सबको बताती
उल्फ़त की गर्मी है रिश्ते जमाती
कंपकंपी सी छूटे है मिले जो
नया सा
कपड़ों पे कपड़े तन पे रहते चढ़े
ठंडी नज़र उनकी सीधी मन में गड़े
शीत लहर को भी चढ़ा है
नशा सा
बाहर की ठंडक औ अंदर की ठिठुरन
आहों की सरगम औ सीने की जकड़न
कैसा है कम्पन नहीं चैन
ज़रा सा
पागल सा मन है ढूँढे उसी को
तड़पाया जिसने रह-रह इसी को
बर्फ़ में दबे हम न दोस्त न
दिलासा
निर्मल सिद्धू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें