ठहरो ज़रा सँवरने दो
फिर जी भर कर
निरख लेना
बाँधूगी आँचल में मधुवन
मधु ॠतु को मुक्त लहरने दो
ठहरो ज़रा सँवरने दो
यौवन के महके
मोहक क्षण
तन में मन में जग में पग में
रंग गंध घुल जाने तक
फागुन को
आज मचलने दो
होली के रंग
भिगोएँ तो
फिर जी भर कर
महक लेना
आजूंगी आखों में काजल
अलकें पलकों तक गिरने दो
ठहरो ज़रा सँवरने दो
यह फागुन है
घुल जाने दो
तन में मन में, मुझ में तुम में
रेशम रेशम हो जाने तक
सांसों को आज
मचलने दो
बाँहों में भर
तो लो अनंग
फिर जी भर कर
बहक लेना
बाचूँगी मौसम की पाती¸
रंगों में रंग निखरने दो
ठहरो ज़रा सँवरने दो
--
निर्मला जोशी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें