बस इतना सा समाचार है
घूरे पर बैठा बच्चा
खाने को कुछ भी बीन रहा है
लगता है बिधना से लड़कर
अपना जीवन छीन रहा है
क्या इसको भी जीना कहते
आता मन में यह विचार है
बस इतना सा समाचार है
अपने बालों के झुरमुट से
जाने क्या वो खींच रही है
बूढ़ी दादी गिने झुर्रियाँ
गले मसूढे भींच रही है
जीने की इच्छा तो मृत है
मरने तक ज़िंदगी भार है
बस इतना सा समाचार है
बिटिया की शादी सर पर है
कैसे बेड़ा पार लगेगा
कुछ दहेज़ तो देना होगा
वरना सब बेकार लगेगा
रिश्तेदार कसेंगे ताने
अपनी बिटिया बनी भार है
बस इतना सा समाचार है
अब की बार फसल अच्छी हो
तो कुछ घर में काम कराऊँ
टपक रही झोपडी इसे भी
नए प्लास्टिक से ढंकवाऊँ
कई दिनों से खांस रहा हूँ
छोटी बिटिया को बुखार है
बस इतना सा समाचार है
शेषधर तिवारी
(इलाहाबाद)
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