खिलते हुए पलाश
बिन तुम्हारे होलिका त्यौहार
था इक कल्पना भर
हाट में बाक़ायदा
तुम स्थान पाते थे बराबर
अब कहाँ वो रंग
वो रंगीन भू-आकाश
खिलते हुए पलाश
मख अगन सा दृष्टिगोचर
है तुम्हारा यह कलेवर
पर तुम्हारे पात नर ने
वार डाले बीडियों पर
पर न हारे तुम तनिक भी
औ हुए न हताश
खिलते हुए पलाश
- नवीन चतुर्वेदी
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