जीवन के कोरे लम्हों पर
रचते फूल पलाश के
तितली के चंचल पंखों पर
सजते फूल पलाश के
सूरज
उतरे झरने में
मल मल खूब नहाये
हरसिंगार के फूल
चांदनी वेणी गूँथ सजाये
चाँद थाम ले हाथ अगर तो
खिलते फूल पलाश के
बादल
पहने पायल डोलें
पर्वत की चोटी पर
हौले खोल किवाड़ झाँकती
ऋतुएँ घर के अंदर
धरा सुन्दरी की चूनर में
टँकते फूल पलाश के
कुछ निशान
बनते जाते हैं
लहरों और हवाओं में
इनकी तो पहचान बसी है
फागुन की रचनाओं में
सखी आज ऋतु के स्वागत में
बिछते फूल पलाश के
-रचना श्रीवास्तव
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