सहमे सहमे
से रहते हैं
अब तेरे एकांत शहर में
किश्तों में सब रिश्ते नाते
किश्तों में सब हँसते गाते
किश्तों में साँसें चलती हैं
किश्तों से
आक्रांत शहर में
सब कुछ फ्रीजों एसी वाली
हवा नहीं है देशीवाली
बिन गोली के नींद न आती
कभी किसी को
क्लांत शहर में
जाने किसकी गश्त हुई है
हालत सबकी पस्त हुई है
एकबार जो देख ले इनको
हो जाए
दिग्भ्रांत शहर में
घर में हो बाहर हो चाहे
गड़ी हैं उसपे जोंक निगाहें
मां बहने महफूज नहीं है
कहने को
सम्भ्रांत शाहर में
-शंभु शरण मंडल
(धनबाद)
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