झुरमट में सूरज छुप जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
ओढ़ कर रज़ाई अंधेरा
टोकनी में दुबक जाए
मेंढक टर्र, टर्र करे जब
चन्दा ताल में छुप जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
बदली जब धरा पर उतरे
दुशाला पहन फुदकती जाए
नींद से उठे गौरैया
दिवस को रात समझ जाए
साझं कुहासा घिर घिर आए
पगली बदली के पाहुन
गुलाब से ओस चुरा लाए
रात मे ठंडी और नम सी
मेरे तलवे से लिपट जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए
नीम की झुकी लदी डाली
मुँडेर पर ओस बिखराए
पुनीत आस सीढ़ी पर
विनीत दुआ से झुक जाए
सांझ कुहासा घिर घिर आए।
--रजनी भार्गव
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