अब बसन्त आया है : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
कुहासे की चादर,
धरा से छँट गई।
फैली हुई धवल रुई,
गगन से हट गई।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
सूर्य की
रश्मियों से,
दिवस प्रकाशित हैं।
वासन्ती सुमनों से ,
तन-मन सुवासित हैं।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
होली का उल्लास है,
आँगन-चौराहों पर।
चहल-पहल नाचती है,
पगदण्डी-राहों पर।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
गुनगुनी धूप ने,
मोर्चे सम्भाले हैं।
पर्वत भी छोड़ रहे,
बर्फ के दुशाले हैं।
उपवन मुस्काया है!
अब बसन्त आया है!
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
खटीमा, ऊधमसिंहनगर (उत्तराखंड)
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