सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

कैसे मन मुस्काए 08

रोटी समझ चाँद को
बच्चा मन ही मन ललचाए।
आशा भरकर वो यह देखे -
माँ कब रोटी लाए।
दशा देखकर उस बच्चे की
कैसे मन मुस्काए?

घर के बाहर
चलना दूभर,
साँस सभी की
नीचे-ऊपर,
काँप रहा उसका दिल थर-थर,
मन बेहद घबराए।
ऐसे आतंकी साये में
कैसे मन मुस्काए?

हुआ धमाका
बम का जब-जब,
बढ़ी वेदना
मन में तब-तब,
लहूलुहान हुए लोगों का
खून छितरता जाए।
इन दृश्यों को देख भला फिर
कैसे मन मुस्काए ?
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संगीता स्वरुप

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