रविवार, 23 अक्तूबर 2011

स्नान कर रहा 09

शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
शूल चुभा सुरभित गुलाब का फूल
कली-मन म्लान कर रहा

जंगल काट, पहाड़ खोदकर
ताल पाटता महल न जाने
भू करवट बदले तो पल में
मिट जाएँगे सब अफसाने
सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने
कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का गान कर रहा
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....

पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता
उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का भान कर रहा
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा

बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें
मन मिल जाए ब्याह रचाएँ
एक गोत्र का खेद न जानें
दलदल में पल दल न बनाते
ना पंचायत, ना चुनाव ही
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें
अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
--
संजीव वर्मा "सलिल"

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