नया वर्ष अभिनंदन!
सहमी सी चिड़िया कुछ बोली
चिपकी आँख कली ने खोली
उखड़ी साँस हवा का आँचल
ओस भरा आँसू का काजलि
ठगी आरती किरन सुबह की
क्या पूजा क्या अर्चन
नदिया पटके पाँव गटर में
प्यास मछरिया तरसे
हरियाली उलझी काँटों में
गाल धुएँ में झुलसे
पूछ रहे हैं आगत का हल
कटे शीश धड़ उपवन
कौड़ी मोल आदमी कुर्सी
धर्म अर्थ विज्ञान
बेशर्मी की हदें तोड़कर
है नंगा इनसान
आज़ादी का अर्थ कटे है
न्याय नीति के बंधन
-- यतीन्द्र राही
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