जाते जाते चले गए
पर लिख गए एक कहानी
कहीं लिख गए धुआँ आग
कहीं लिख गए पानी
दहशत भरी इबारत लेकर
हवा गयी हर घर में
जाने किसकी नज़र लग गई
फूले फले शहर में
बारूदी दुर्गंध शब्द में
आग उगलती बानी
लहू लुहान हो गए शिवाले
खंडित हुई नमाज़ें
चिड़ियों के जल गए घोंसले
खुशबू किसे नवाज़ें
सन्नाटे में खौफ़ लिखा है
हर यात्रा अनजानी
मेजों पर टँग गए खिलौने
घायल हुए परिंदे
रक्त सनी मुट्ठियाँ उठाए
हँसते रहे दरिंदे
युद्ध भरा आकाश सदी का
बनकर रहा निशानी
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चन्द्रेश गुप्त
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