कुदरत का यह लेखा
सपने में जो देखा
सुबह वही तो समाचार है
ताक-झाँक की थी पड़ोस में
’विकिलिक्स’ अखबार में छाये
टपकी लार बनी ईंधन तो
भट्टी खुद ही जलती जाये
लावा बहे दनादन
रीता घट रोता मन
छपी खबर का यही सार है
गाली मन में दबी पड़ी थी
गोली बन कर निकल पड़ी है
ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
मौत सामने तनी खड़ी है
दिवास्वप्न तो दूर
अंतस् का दर्पण चूर
भीतर गहरा अंधकार है |
-हरिहर झा
(मेलबर्न, आस्ट्रेलिया)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें