घर घर में
फिर आया
उत्सव का मौसम
बिजली की धोबिन ने
जमकर था लूटा
धोबी इसके फंदों
से थोड़ा छूटा
त्यौहारी पैसों से
जेबों में खनखन
सूखे आँगन में है
कपड़ों का सावन
सहरा पे लहराया
रंगों का परचम
हलवाई ने प्रतिमा
शक्कर से गढ़ दी
भूखी गैलरियों में
जमकर ये बिकती
बढ़ई के औजारों में
होती खट-खट
दिन भर भड़भूँजे के
घर मचती पट-पट
आँवें के मुख पर है
लाली का आलम
मैली ना हो जाएँ
बैठीं थीं छुपकर
बक्सों से खुशियाँ सब
फिर आईं बाहर
हर घर में रौनक है
गलियों में हलचल
फूलों से लगते वो
पत्थर जो थे कल
अद्भुत है कमियों का
खुशियों से संगम
-धर्मेन्द्र कुमार सिंह
(बरमाना, बिलासपुर,हिमाचल प्रदेश)
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